हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार पद्मश्री नरेंद्र कोहली जी का जाना हिन्दी जगत में एक महाशून्य दे गया। दिनांक १७ अप्रैल २०२१ के दिन उहोन ने अंतिम साँस ली | मेरे लिए यह व्यक्तिगत क्षति है | मेरा पूरा परिवार शोक मे डूबा है | पटना आने पर वे मेरे आवास पर अवश्य आते थे | वे एक सिद्धहस्त साहित्यकार, उपन्यासकार थे। मेरा उनसे व्यक्तिगत संबंध रहा। उनका बेबाकीपन, उनकी सहजता , उनका स्नेह से भरा व्यक्तित्व इस क्षण मेरे मन को अवसाद से भर रहा है | वे इस तरह एकाएक चले जाएँगे इसकी कल्पना भी नहीं थी। कालजयी कथाकार डॉ. नरेन्द्र कोहली ने हिंदी साहित्य के लिए साहित्य का अक्षय भण्डार छोर गए हैं | वे साहित्य यात्रा के परामर्शी थे | आधुनिक युग में इन्होंने साहित्य में आस्थावादी मूल्यों को स्वर दिया| उनका ह्रदय राममय था | रामजी उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें |