नमस्कार मित्रों
आईए इसके पूर्व कि मैं आपको नरेन्द्र कोहली जी से सात वर्ष पहले कि एक यादगार बातचीत का अंश दिखाऊँ आपको एक संस्मरण सुना देता हूँ। 2014 की बात है, मैं दिल्ली गया हुआ था। स्वाभाविक रूप से मैंने आदरणीय कोहली जी को फोन किया। भाईसाहब मैं दिल्ली आया हूँ। उन्होंने प्रसन्नाता व्यक्त करते हुए कहा, आ जाओ भाई, भेंट होनी चाहिए। मैंने पूछा आपको कब सुविधा होगी? उन्होंने कहा 3 बजे के बाद ठीक रहेगा। मैं तबतक थोरा आराम भी कर लूँगा। १२ बज रहा था| मै १२.४५ तक घर से निकाल गया | जनता था की कोहली जी समय के पावन्द हैं| मैं मेट्रो से नजदीक का स्टेशन पहुंचा, मन ही मन उनसे मिलने पर साहित्य यात्रा के लिए बातचीत करने की योजना बना ली थी। भाई आशीष कांधवे जी को पहले ही फोन कर दिया था। उन्होंने मेट्रो स्टेशन पर गाड़ी भेज दी थी। मैं सीधे आशीष जी के कार्यालय गया और वहाँ से फिर उन्हीं की गाड़ी से कोहली जी के यहाँ पहुँचा। कोहली जी की सहजता देखिये कि वे पहले से ही इन्तजार कर रहे थे। भीतर जाकर मैंने विनम्रता पूर्वक अभिवादन किया। मैं बता दूँ कि उनके सोफा का बगलवाला जो बाहु आश्रय है वह बहुच चौरा है। बहुआश्रय समझे न ? (armrest) आप बातचीत के क्रम में सोफ़ा देख ही लेंगे। उन सभी बाहुआश्रय के ऊपर विभिन्न आकार का श्रीमद्भागवत गीता और महाभारत रखा था। मैं ने उनसे बातचीत के क्रम मे सवाल किया तो जाकर एक नवीन राज खुला। उन्होंने कहा कि मैं भविष्य की योजनाओं पर किसी से बात नहीं करता, पर पहली बार आपको बताता हूँ। मैं सोच रहा हूँ कि गीता पर उपन्यास लिखा जाय। मैंने कहा गीता में संवाद कहाँ है? उन्होंने कहा हाँ, यही तो समस्या है पर मैं सोच रहा हूँ। मैंने कहा इसी सोचने के क्रम मे सोफ़ा पर महाभारत और गीत आपने जमा कर रखा है| उन्होंने कहा मैं शाम को घर में सभी को बिठाकर गीता, महाभारत पर चर्चा करता हूँ। इससे दो लाभ होता है। एक तो बच्चों में संस्कार आता है। वे भारतीय संस्कृति से परिचित होते हैं और दूसरा यह कि मैं मन ही मन उपन्यास लिखने की योजना को लेकर मन में चलरहे विचारों को स्वरूप प्रदान करता रहता हूँ।
दोसाल बाद 2016 मे यह उपन्यास वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। इसबीच उपन्यास को लेकर फोन पर कई बार आदरणीय कोहली जी से बातचीत हुई। साहित्य यात्रा मे प्रकाशन के पूर्व उपन्यास का अंश भी छपा। प्रकाशन के तुरत बाद 'शरणम' डाक से मेरेपास पहुंच गया। उनदिनों मेरी पत्नी म्भीर रूप से अस्वस्थ चल रही थीं और रूबन मे भर्ती थीं। मैं सारा दिन उनके पास बैठा रहता था। मन की क्या अवस्था थी कह नहीं सकता। आशा का दीपक आहिस्ता-आहिस्ता क्षीण हो रहा था, मन में निराशा के बादल छा रहे थे, अवसाद भर रहा था। ऐसे में मेरे हाथ ‘शरणम’ लग गया। अस्पताल में बैठकर गीता पढ नहीं सकता था| अतः शरणम पढा करता था। गीता पढने के बाद जो एक विशेष भाव मन में जगता है कुछ उसी तरह का भाव कोहली जी रचित 'शरणम' पढकर मिला। मन को शांति मिली।
आज कोहली जी हमारे बीच नहीं हैं।...
हिन्दी
के
मूर्धन्य
साहित्यकार
पद्मश्री
नरेंद्र
कोहली
जी
का
जाना
हिन्दी
जगत
में
एक
महाशून्य
दे
गया।
दिनांक
१७
अप्रैल
२०२१
के
दिन
उन्होंने
अंतिम साँस
ली। मेरे लिए
यह
व्यक्तिगत
क्षति
है।
मेरा
पूरा
परिवार
शोक
मे
डूबा
है।
यह
उनका
स्नेह
ही
था
कि
पटना
आने
पर
वे
मेरे
आवास
पर
अवश्य
आते
थे
अथवा
मुझे
फोन
कर
बुलवा
लेते
थे।
वे
एक
सिद्धहस्त
साहित्यकार, उपन्यासकार
थे।
उनका
बेबाकीपन, उनकी
सहजता, उनका
स्नेह
से
भरा
व्यक्तित्व
इस
क्षण
मेरे
मन
को
अवसाद
से
भर
रहा
है।
वे
इस
तरह
एकाएक
चले
जाएँगे
इसकी
कल्पना
भी
नहीं
थी।
कालजयी
कथाकार
थे
डॉ.
नरेन्द्र
कोहली।
पौराणिक
आख्यानों
को
उन्होंने
आधुनिक
संदर्भ
में
लिखकर
विश्व
के
समक्ष
प्रस्तुत
किया।
कोहली
जी
आज
के
वैज्ञानिक
युग
में
मानते
थे
कि
नायक
का
नायकत्व
आदर्शमय, प्रेरणादायी
होने
के
साथ-साथ
विश्वसनीय
एवं
अनुकरणीय
भी
होना
चाहिए।
इस
कारण
कोहली
जी
ने
अपने
उपन्यासों
में
राम, कृष्ण
को
नए
मानवीय, विश्वसनीय, सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक
एवं
अत्याधुनिक
रूप
में
प्रस्तुत
किया।
भारतीय
संस्कृति
के
अजस्र
श्रोत
को
आधुनिक
काल
में
नवीन
संदर्भ
में
ढालकर
पाठकों
के
लिए
प्रस्तुत
करना
उनकी
अमूल्य
देन
है।
राम
कथा
पर
लिखे
गए
अद्वितीय
उपन्यासों
के
लिए
उन्हें
आधुनिक
तुलसीदास
के
रूप
में
भी
स्मरण
किया
जाता
है।
वे
हिंदी
साहित्य
के
लिए
अक्षय
भण्डार
छोर
गए
हैं।
वे
साहित्य यात्रा
के
परामर्शी
भी
थे।
आधुनिक
युग
में
इन्होंने
साहित्य
में
आस्थावादी
मूल्यों
को
स्वर
दिया।
उनका
हृदय
राममय
था। रामजी उनकी
आत्मा
को
शांति
प्रदान
करें।
साहित्य
यात्रा
का
एक
विषेष
अंक
उनपर
केन्द्रित
था।
यहाँ
प्रस्तुत
है
उनका
यह
अविष्मरणीय
बातचीत
जो
मैंने
उनसे
साहित्य
यात्रा
के
लिए
की
थी।
पूर्व
से
पूरी
तैयारी
तो
थी
नहीं
फिर
भी
मेरे
पास
मोबाइल
था
सो
एकाएक मन
मे
आया
की
रिकार्ड
कर
लूँ
| आशीष जी ने
साथ
दिया|
किसी
तरह
बातचीत
का
कुछ
अंश
रिकार्ड
हो
गए|
पूरी
बातचीत
होते
होते
बटरी
खतम
हो
गया|
किन्तु
जो
बातचीत
है
वह
आज
अमूल्य
है|
इस
साक्षात्कार
के
रेकार्डिग
में
सहयोग
के
लिए
मैं
आधुनिक
साहित्य
के
संपादक
डा.
आशीष
कांधवे
जी
को
धन्यवाद
देता
हूँ
| आप देखें और
सुनें|
आनद
आएगा|
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